उत्तम स्वास्थ्य और सौन्दर्य कौन नहीं चाहता.
वास्तविक सुंदरता क्या है यह हम सब लोग जानते तो हैं मगर उस और अपना ध्यान केंद्रित नहीं करते. ऊपरी तौर पर केवल सुंदर नाक नक्श, गोरे रंग को ही सुन्दरता का और शारीरिक हष्ट-पुष्टता को ही स्वास्थ्य का मापदंड मान लिया जाता है.
अन्य लोगों की भी केवल बाहरी सुंदरता ही देखते हैं और स्वयं को भी ऊपरी तौर पर ही कृत्रिम प्रसाधनों द्वारा सुंदर बनाने में लगे रहते हैं.
यहाँ हम वास्तविक सेहत और सुंदरता के बारे में कुछ बातें बताने जा रहे है जिन्हे पढ़ कर आप अवश्य ही लाभान्वित होंगे.वास्तविक सौंदर्य और स्वास्थ्य के बारे में कुछ महत्वपूर्ण बातें......
वास्तविक सुन्दरता मन की सच्ची प्रसन्नता में-
वास्तविक सौन्दर्य मन की प्रसन्नता में है |
जब हम प्रसन्न और खिले खिले होते है तो हमारा मन सात्विक सौंदर्य की अनुभूति करने लगता है. हम आकर्षक दिखाई देने लगते है चाहे हमारा रंग कैसा भी हो, नाक-नक्शा कैसा भी हो. फूल जब खिला और विहँसता सा डाली पर झूमता है तो साधारण होते हुए भी कितना सुन्दर दिखाई देता है. पक्षी फुदक फुदक कर कलरव करते कितने सुहावने लगते है, कुत्ते, बिल्ली यहाँ तक कि सूअर के छोटे छोटे अबोध बच्चे भी कितने सुन्दर लगते है. प्रसन्नता हमें हलका कर देती है, हमारे हावभाव ही बदल जाते है और हम सुन्दर दिखने और सुन्दर महसूस कराने लगते है. और इतना प्रसन्न कोई निर्मल मन का व्यक्ति ही हो सकता है.
जिस चीज को देखकर, सुनकर, महसूस कर मन सात्विक प्रसन्नता का अनुभव करे, वह है सच्ची सुन्दरता.
कभी कभी कोई व्यक्ति देखने में सुन्दर, सुडौल प्रतीत होता है पर जब हम उसके सम्पर्क में आते है तो वह स्वभाव से उतना अच्छा नहीं होता जितना हम उसकी बाह्य सुन्दरता देख कर प्रभावित हो गये थे.
तब हमें उसके चेहरे की वही सुन्दरता, उसके हाव-भाव सब अच्छा महसूस नहीं कराते. किन्तु इसके विपरीत अगर कोई व्यक्ति सुन्दर नाक-नक्श व गौरे रंग वाला नहीं भी है पर स्वभाव से सुन्दर व स्वस्थ सोच वाला है तो उसके सुन्दर और श्रेष्ठ विचारों की छाप उसके मुखमंडल पर भी स्थायी रूप से विराजमान रहती है. ऐसे व्यक्ति से मिलकर अन्य लोगों को भी खुशी व शान्ति मिलती है और ऐसा व्यक्ति स्वयं भी स्वभाविक रूप से प्रसन्न रहता है.
सच पूछा जाये तो ऐसी सात्विक प्रसन्नता की अनुभूति ही सौन्दर्य अनुभूति है. प्रसन्नता लेने वाले के लिए भी और प्रसन्नता देने वाले के लिए भी.
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क्या सच्ची सुन्दरता कृत्रिम सौन्दर्य प्रसाधनों में निहित है-
सच्ची सुन्दरता कृत्रिम सौन्दर्य प्रसाधनों में नीहित नहीं है. सच्ची सुन्दरता तो उत्तम शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य में निहित है. शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य दोनों ही एक दूसरे के पूरक है और कारक भी. यदि मनुष्य शारीरिक रूप से स्वस्थ नहीं है तो उसका मस्तिष्क भी स्वस्थ नहीं रह सकता. इसी तरह यदि मानसिक रूप से अस्वस्थ है तो शारीरिक रूप से भी उस पर बुरा प्रभाव पड़ेगा. तन मन की अस्वस्थता व्यक्ति का सब रूप बिगाड़ देती है जिसे श्रृंगार के कृत्रिम सौन्दर्य प्रसाधन भी छिपा नहीं सकते. अधिक मात्रा में कृत्रिम सौन्दर्य प्रसाधनों का प्रयोग तो धन व समय की बरबादी ही है. त्वचा भी कृत्रिम सौन्दर्य प्रसाधनों के प्रयोग से खराब हो जाती है.
उचित आहार से शरीर और उचित सोच व विचारों से मष्तिष्क स्वस्थ्य बनता है और इन दोनों के सुन्दर स्वस्थ होने से जीवन सुन्दर बनता है और हमें व अन्य संसर्ग में आने व्यक्तियों को भी सौंदर्य की अनुभूति होती रहती है.
जब तक आपका शरीर अपना कार्य सुचारु रूप से नहीं करता तब तक सौंदर्य प्रक्स्ट नहीं होगा और ना ही शरीर में रक्त प्रवाह ठीक प्रकार से होगा। अगर मन के भाव व विचार अच्छे नहीं होंगे तो ये बुरे भाव चेहरे पर आ कर सारे सौंदर्य को बिगाड़ देंगे चाहे आपने मुख पर कितने ही महंगे कृत्रिम सौंदर्य प्रसाधनों का उपयोग किया हो.
कुरूपता क्या है-
कुरूपता ईश्वर का अभिशाप नहीं बल्कि हमारे ही गलत आचार विचारो का प्रतिबिम्ब है. मन की गन्दगी चेहरे के हाव भाव बिगाड़ देती है. गलत आचरण के कारण मनुष्य समाज में अलग थलग हो जाता है व अपमानित सा महसूस कर उसके चेहरे पर एक धिक्कारपन का भाव जगह बना लेता है.स्वस्थ्य ख़राब और आत्मविश्वास डगमगा जाता है. व्यक्ति गलत राह पकड़ने के परिणामस्वरुप विक्षिप्त सा दिखाई पड़ने लगता है.
तभी तो कहा जाता है कि 'चेहरा मन का दर्पण' है. गलत आचार विचार कुरूपता के ही प्रतीक है और कुरूपता कलुषित मन का ही परिणाम है और सुंदरता स्वस्थ शरीर, स्वच्छ स्वभाव और अकलुष मन का सामूहिक परिणाम है.
सच्ची सुन्दरता व स्वास्थ्य के लिए सही सोच व सुन्दर, मधुर स्वभाव आवश्यक-
स्वास्थ्य और सुंदरता को स्थाई बनाए रखने के लिए मधुर स्वभाव की अत्यंत आवश्यकता है. जिन व्यक्तियों का मन घरेलू पारिवारिक व सामाजिक कलह, संघर्षों या लड़ाई झगड़ों में उलझा रहता है, गुुुुप्त मन में कोई ना कोई चिंता या उत्तेजना बनी रहती है उनके चेहरे पर कर्कशता, क्रोध आवेश तथा तनाव छाया रहता है और अंदर की तनी हुई मानसिक स्थिति उनकी मुख मुद्रा पर उभर कर उनके चेहरे और उनके व्यक्तित्व को कुरूप बना देती है. क्रोध ईर्ष्या, वासना, उत्तेजना चिंताएं दुष्ट भावनाएं हैं जो मनुष्य को कुरूप और अनाकर्षक बनाती है दुर्गुणों वा कुटिल स्वभाव से कुरूपता ही उत्पन्न होती है.
इसलिए आवश्यक है कि सुंदर दिखने व सौंदर्य को महसूस करने के लिए हमें विभिन्न प्रयासों द्वारा स्वयं को शांत रखने का प्रयास करना चाहिए वह अपने स्वभाव को मधुर व कोमल बनाए रखना चाहिये.
देवी-देवताओं और महात्माओं के सौन्दर्य से सीख-
हमें अपने देवी देवताओं और महात्माओं तथा महापुरुषों के सौंदर्य और शांत मुद्रा से सीख लेनी चाहिए. हमारे देवताओं और महापुरुषों के चेहरे के सौंदर्य का कारण उनके मन में छिपा हुआ है. उनके चेहरे की सरलता, सरसता, हल्की हल्की मुस्कान पर मानव मन बार-न्योछावर होने लगता है. उनका सुंदर सुखदायक और आंखों को प्रिय लगने वाला मुखमंडल देखकर हर किसी को शांति और सौंदर्य की अनुभूति होती है. यह सब उनके हृदय की सुंदरता को ही प्रकट करता है. भगवान श्री कृष्ण के बचपन के चित्रों में वह विहंसते हुए कितने सुंदर दिखाई देते हैं. किलक किलक कर इधर-उधर घुटनों से चल रहे हैं. उनके निर्दोष मनोभाव उनके चेहरे पर प्रकट हो रहे हैं. इसी प्रकार भगवान राम, सीता जी, भरत, शत्रुघ्न इत्यादि सभी के चेहरे पर मधुर मुस्कान खेलती दिखाई देती है. सरस्वती, लक्ष्मी महादेव, विष्णु इत्यादि सब के मुख मधुर आभा से प्रदीप्त होते दिखाई देते हैं.
हम सबका मुख मंडल हमारे आंतरिक सद्गुणों के कारण ही आकर्षक बनता है. सद्गुणों का प्रकाश चारों और फैलता है. प्रेम, ईमानदारी, पवित्रता और सज्जनता, कोमलता और भलाई इन गुणों में गजब का आकर्षण है. इसीलिये हमें इन सद्गुणों को अपनाने का प्रयास करना चाहिए और अपने मुख पर इन भावों को स्थाई रूप से बनाए रखने का प्रयास करना चाहिए।
इन भावों की गुप्त तरंगे हमारे शरीर में सर्वत्र दौड़कर हमारी आत्मा को सौंदर्य और अलौकिकता से भर देगी और हमारी मुख मुद्रा भी मोहक बन जाएगी. यही कारण था कि हमारे देव पुरुषों और महात्माओं के दर्शन से हिंसक जंतु तक वशीभूत हो जाते थे.
"अच्छे बुरे विचारों की धारा मानसिक केंद्र से चारों और बिखर कर खून के प्रवाह के साथ चमड़ी तक आती है और वहां अपना प्रभाव छोड़ जाती है यदि यह मानसिक विचारधारा निरंतर आती-जाती रहे तो उसका प्रभाव भी स्थाई रह जाता है"
आध्यात्मिक विचारधारा अपनायें-
यह बात सोलह आने सच है कि आध्यात्मिक विचारधारा अपना कर निरंतर सद्गुणों का अभ्यास कर हम देवपुरुषों और महात्माओं जैसे अलौकिक शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य और सौंदर्य को प्राप्त कर सकते हैं. अनेक आध्यात्मिक केन्द्रो पर यह अभ्यास कराया जाता है. ब्रह्माकुमारीज़ जैसे ईश्वरीय विद्द्यालयोँ में इस अभ्यास को राजयोग कहा जाता है जिसमे देवी देवताओँ जैसी अलौकिकता, सुंदरता और रॉयल्टी प्राप्त करने का ज्ञान और अभ्यास कराया जाता है.
निष्कर्ष-
यह बड़ा शोक का विषय है कि हम केवल अपनी मानसिक दुर्भावनाओं और कुटिलता के कारण ही अपनी मोहनी शक्ति खो बैठते हैं. हमारी आयु स्थिति या आमदनी चाहे कुछ भी क्यों ना हो अगर हम मन में मधुर देवतुल्य गुण और भाव रखते हैंऔर उन्हें अपने मन में पूर्णरूप से स्थिर रखते है, सोते जागते उन्हें रक्त के प्रवाह के साथ समूचे शरीर में घूमने देते है, अपने जीवन और चेहरे पर प्रदर्शित करने का अभ्यास करते हैं, तो हममें मोहक शक्ति व स्थायी स्वास्थ्य तथा सुंदरता विराजमान हो जायेगी जिससे हर कोई प्रभावित होता है और हमारा आभामंडल औरों को आकर्षित करने की मोहिनी शक्ति से परिपूर्ण हो जाता है.
इसीलिए स्थायी स्वास्थ्य और सौंदर्य प्राप्त करने के लिए-
"सदा प्रसन्नता और आनंद के भव्य विचारो में ही रमण कीजिये। जब आत्मा प्रसन्न रहती है तो शरीर भी स्वस्थ और सुन्दर रहता है.
प्रसिद्द मनोविज्ञान विशेषज्ञ ''श्रीलालजीराम शुक्ल का कहना है-- ' प्रसन्नता शक्ति की परिचायिका है. जिस आदमी के अंदर आध्यात्मिक शक्ति होती है वही प्रसन्न रह सकता है. प्रसन्नता स्वयं उस शक्ति की उत्पादिका भी है. जो आदमी जितना प्रसन्न रहता है उतना ही अपना आध्यात्मिक बल भी बढ़ा लेता है. इतना ही नहीं वह अपनी शारीरिक शक्ति में भी वृद्धि कर लेता है. मन प्रसन्न रहने पर शरीर की अमृत पैदा करने वाली ग्रंथियां अपना काम भली प्रकार करती है और शरीर में अपना प्रवाह जारी रखती है जिनसे शरीर अक्षय बना रहता है और बढ़ता है. विरला ही कोई प्रसन्नचित्त व्यक्ति रोगी मिलेगा।'
कहना यही है कि स्वास्थ्य और सौंदर्य प्राप्त करने के लिए बाह्य और कृत्रिम सौंदर्य प्रसाधनों में धन और समय बरबाद ना कर आध्यात्मिकता अपनाते हुए सद्गुणों को ग्रहण करे और अधिक से अधिक आनंद और और प्रसन्नता के सुखद विचारो में निवास कीजिये और स्वस्थ और सुंदर बनिए। आत्मा की प्रसन्नता में अक्षय सौंदर्य निहित है. भव्य विचारो द्वारा स्वस्थ व सुंदर बनिये.
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