यह जीवन अमूल्य है. ईश्वर का अनुपम उपहार है. इसे श्रेष्ठ से भी श्रेष्ठतम बनाने में निरन्तर प्रयासरत रहना हमारा परम कर्तव्य है़.
जीवन को सुन्दर, स्वस्थ, बेहतर बनाये रखने के लिए कुछ व्यवहारिक उपाय इस लेख में दिए गये हैं. पढ़ कर अवश्य लाभान्वित होवें.
जीवन को बेहतर ढंग से जीने के लिए कुछ व्यवहारिक सुझाव
यूँ तो हर व्यक्ति अपने जीवन को अपने ढंग से जीता है। प्रत्येक व्यक्ति का जीवन के प्रति अपना दृष्टिकोण होता है किन्तु फिर भी मैं यहाँ कुछ ऐसी सामान्य व्यवहारिक बातों का उल्लेख करूंगी जो जीवन को सरल, स्पष्ट, प्रवाहमय, खुशगवार तथा बोझिलता से रहित बनाने में मददगार सिद्ध हो सकती है।
1. जीवन के लक्ष्य को निर्धारित कर के चले किन्तु अगर कभी अपेक्षाकृत बेहतर विकल्प सम्मुख आ जाए तो लोचदार दृष्टिकोण अपनाते हुए उस पर भी विचार करने में संकोच ना करे।
2. किसी भी कार्य को करते हुए सदा सकारात्मक सोच ही अपनाये किन्तु विपरीत परिणामों के लिए भी तैयार रहे।
3. आत्म-विश्वासी बने किन्तु अति आत्म-विश्वास से बचें।4. जीवन में हर तरह की संभावनाओं के लिए स्वयं को सदा तैयार रखे। अपनी सोच को ऐसा बनाये कि यह जीवन दुख-सुख दोनों का संगम है । ऐसी सोच का व्यक्ति विपरीत परिस्थतियों में भी अपना मानसिक संतुलन बनाये रखता है तथा दुखद अवसरों पर विचलित ना होकर स्वयं को तथा औरों को भी संभाल पाने में समर्थ होता है।
ऐसी सोच बनाये रखने के लिए निरन्तर अभ्यास की आवश्यकता होती है। अच्छी पुस्तकें तथा ध्यान एवं योग के द्वारा हम ऐसी स्वस्थ मानसिकता प्राप्त कर सकते हैं।
5. आदर्शों तथा सिद्धांतों को जीवन में सर्वोपरि स्थान दे किन्तु उन्हें व्यवहारिकता की कसौटी पर भी कस लिया जाए तो बेहतर होगा। कोरी किताबी आदर्शवादिता से तो लोग हम से दूर ही भागेंगे और हमें भी एक जिद्दी और रूखे व्यक्तित्व के ख़िताब के अलावा कुछ प्राप्त नहीं होगा। इसीलिए हमें आदर्शों और वस्तुस्थिति में इस तरह सामंजस्य बना कर चलना चाहिए कि हम अपनी दृष्टि में सदा ऊँचे बने रहे तथा दूसरों को भी हमारे कारण कोई अनुचित कष्ट नहीं हो।
6. अपनी आलोचना सुनकर विचलित नहीं हों। पीठ पीछे कही गयी बातों को जहाँ तक बन पड़े तूल नहीं दें । यदि आप स्वयं को सही समझते हैं तो के आलोचना करने वाले को अपना दृष्टि-कोण नम्रता-पूर्वक समझा दें।हर व्यक्ति अपने-अपने ढंग से सोचता है। हमें क्या चाहिए यह हम ही बेहतर सोच सकते हैं। हाँ, यदि आलोचना करने वाले की बात सही लगे तो उस पर विचार कर अपनी कमी अवश्य सुधारनी चाहिए।
7. ऐसे लोगों को अपने अधिक पास ना आने दें जिनका काम बिना सोचे-विचारे दूसरों के काम में कमी निकालना ही होता है। अपने रिश्तेदारों में ही ऐसे बहुत से लोग होते हैं। उनकी हम अवहेलना तो नहीं कर सकते पर ऐसे लोगों को अपने घर की बातें अधिक नहीं बताये क्योंकि बिना वजह की आलोचना से मनोबल कमजोर पड़ जाता है।
8. जीवन में सफलता से उत्साहित तो होयें किन्तु अपने भीतर अहंकार को न आने दे। असफलता की दशा में निराश ना हों वरन दोगुने उत्साह से तथा विवेकपूर्वक पुनः प्रयास में जुट जाएँ। असफलता से भी बहुत कुछ् सीखने को मिलता है। कभी-कभी असफलता के भी दूरगामी परिणाम बहुत लाभदायक होते हैं। वैसे भी राहों के अनुभवों का महत्व मंजिलों के महत्व से किसी तरह भी कम नहीं होता।
----------
अन्य लेख पढ़े..
टिप्पणियाँ