पतिपत्नी के प्रेम पर आपने बहुत कविताएं पढ़ी होगी। पतिपत्नी के संबंधों की गहनता पर पति द्वारा जीवन संगिनी अर्थात पत्नी को सम्बोधित करती दिल को छू लेने वाली यह भावपूर्ण कविता 'साथी मेरे' पढ़ें.
पति-पत्नी के बीच का संबंध बहुत गहरा, बहुत पवित्र और जन्म जन्मांतर का संबंध होता है. एक दूसरे के लिए वह संगी साथी,जीवन साथी सभी कुछ होते हैं. दोनों एक दूसरे के पूरक होते हैं. संग संग रहते हुए वह एक दूसरे की अनुभूतियों में समा जाते हैं. इसी पवित्र, प्यारे और सुंदर रिश्ते को लक्षित करते हुए लिखी गई है मेरी यह मौलिक कविता. आशा है आपकी प्रतिक्रियाएं अवश्य मिलेगी...
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तो प्रस्तुत है यह भावपूर्ण, दिल को छू लेने वाली
कविता 'साथी मेरे'
धूप को छांव को, बरखा बहार को
प्रिये तेरे साथ से पहचानता हूंसाथी मेरे, इस जिंदगी को अब मैं
बस तेरे नाम, से ही तो जानता हूं
कितने सावन हमने पीछे छोड़े
सुख-दुख के पलों से नाते जोड़े
जुटी खुशियां और आशाएं भी टूटी
करें मगर क्यों गम जो दुनिया रूठी
मीत मेरे मैं तो, तेरे अपनेपन
की छांव तले किस्मत सँवारता हूं
साथी मेरे, इस जिंदगी को अब मैं
बस तेरे नाम, से ही तो जानता हूं
बस तेरे नाम, से ही तो जानता हूं
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एक दूजे के आंसू हम पी लेते हैं
लिए हाथ में हाथ हम जी लेते हैं
साथ-साथ गुजारे कितने पड़ाव
स्मृतियों में बंद है खुशबू के गांव
कोई अकेला होगा तो काम आएगी
यादों की पोटली यूं ही संभालता हूं
साथी मेरे, इस जिंदगी को अब मैं
बस तेरे नाम, से ही तो जानता हूं
आहट देहरी पे, आने वाली साँझ
एक दूजे के आंसू हम पी लेते हैं
लिए हाथ में हाथ हम जी लेते हैं
साथ-साथ गुजारे कितने पड़ाव
स्मृतियों में बंद है खुशबू के गांव
कोई अकेला होगा तो काम आएगी
यादों की पोटली यूं ही संभालता हूं
साथी मेरे, इस जिंदगी को अब मैं
बस तेरे नाम, से ही तो जानता हूं
आहट देहरी पे, आने वाली साँझ
मीत मेरे बैठें, आ अब तज काज
दूर क्षितिज पर, मिले धरा-आकाश
परे देह के शाश्वत यही आभास
अनुभूतियों के चित्र पटल को मैं
तुम संग अकसर निहारता हूं
साथी मेरे, इस जिंदगी को अब मैं
बस तेरे नाम, से ही तो जानता हूं
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दूर क्षितिज पर, मिले धरा-आकाश
परे देह के शाश्वत यही आभास
अनुभूतियों के चित्र पटल को मैं
तुम संग अकसर निहारता हूं
साथी मेरे, इस जिंदगी को अब मैं
बस तेरे नाम, से ही तो जानता हूं
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