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सच में सुखद गृहस्थ जीवन और दांपत्य प्रेम की अनुभूति जीवन की वह पूंजी है जिसका कोई मोल ही नहीं है. अनमोल है यह पूंजी।
तभी तो एक सुखी गृहणी के रोम रोम से
यही एहसास मुखर होता दिखाई देता है कि-
बड़े अच्छे लगते हैं यह नदिया, यह धरती, यह रैना और तुम..
unsplash.com से साभार
कुछ वर्ष पूर्व दूरदर्शन पर प्रसारित एक धारावाहिक के शीर्षक की ये पंक्तियाँ अक्सर मेरे मस्तिष्क में कौंध जाती है 'बड़े अच्छे लगते हैं यह नदिया, यह धरती, यह रैना और तुम'
कुछ वर्ष पूर्व दूरदर्शन पर प्रसारित एक धारावाहिक के शीर्षक की ये पंक्तियाँ अक्सर मेरे मस्तिष्क में कौंध जाती है 'बड़े अच्छे लगते हैं यह नदिया, यह धरती, यह रैना और तुम'
सच में बड़े अच्छे लगते हैं यह घर-संसार , यह गृहस्थी रुपी नदिया जिसमें ऊँची-नीची हिलोरें उठती-गिरती रहती हैं। गृह-स्वामी और गृह-स्वामिनी नदिया के दो किनारे हैं। गृहस्थी दोनों मिलकर चलाते हैं किन्तु घर का केंद्र-बिंदु प्रायः गृहणी ही होती है।
गृहणी अर्थात गृह-संचालन की जिम्मेदारी को ग्रहण करने वाली, गृह-स्वामिनी
गृहणी होना जिम्मेदारी के साथ-साथ एक मधुर अनुभूति भी है. इस अनुपम अनुभूति का संचार हृदय में सदैव बना रहे बस इसी में गृहस्थ-जीवन की सार्थकता है.
सच बताऊँ, मुझे बड़ा अच्छा लगता है जब घर में पति व बच्छे बात-बात पर मुझे ही पुकारते हैं। मेरे बिना उनकी गाडी आगे सरकती ही नहीं।
और तब तो मैं स्वयं को बहुत ही गौरवान्वित अनुभव करती हूँ जब मैं पति-देव पर हुक्म चलाती हूँ और वह हाथ जोड़ कर तत्परतापूर्वक मेरे हुक्म का पालन करने का अभिनय करते हैं या मेरी डांट को चुपचाप सुनकर अपने कान पकड़ने लगते हैं और झूठ-मूठ सफाई देने लगते हैं बच्चे भी इस नोकझोंक में शामिल हो जाते हैं, कभी माँ का पक्ष लेकर तो कभी पापा की साइड लेकर।
कभी पासा पलट भी जाता है और मुझे डांट खानी पड़ती है। मैं कभी चुप रहकर तो कभी उनकी नाराजगी को मजाक में लेकर स्थिति को संभालने का प्रयास करती हूँ।यही छोटी-छोटी बातें हैं जिनसे एक चार-दिवारी हँसते-खेलते घर का रूप ले लेती है। इसी हंसी-खुशी को अपने प्यार, समझदारी और धैर्य से बनाये रखना ही तो हम गृहणियों का सर्व-प्रमुख कर्त्तव्य है और इसी में हमारे नारीत्व की, गृहणित्व की सार्थकता है।
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यही है गृहणी का स्वाभाविक रूप, गृहणी की परिभाषा। नारी की समस्त गरिमा नारी के इसी रूप में निहित है।घर संभालना कोई आसान कार्य नहीं है। घर को सुव्यवस्थित रखना, बच्चों का उचित पालन-पोषण करना उन्हें सुसंस्कृत करना, उन्हें योग्य बनाना, बुजुर्गों तथा अतिथियों की देख-भाल तथा उनका सम्मान करना, रिश्तेदारों से अच्छे सम्बन्ध बनाये रखना तथा सामाजिक व्यवहार निभाना-- क्या ये सब आसानी से हो जाता है? नहीं, इन सब दायित्वों के निर्वाहन के लिए पर्याप्त सुघड़ता, कुशलता, समझदारी, धैर्य और इन सब से ऊपर हृदय में असीमित प्रेम की आवश्यकता होती है और इन सब गुणों के सम्मिश्रण की साकार मूर्ति होती है नारी, एक गृहणी। स्वाभाविक रूप से नारी के भीतर एक समर्पण की भावना होती है जिसके कारण नारी घर के सारे दायित्व खुशी-खुशी निभा ले जाती है। घर संभालना उसके लिए एक जिम्मेदारी नहीं वरन एक मधुर अनुभव होता है।
स्वयं भूखे रहकर पहले सब को खिलाने में उसे आनंद की अनुभूति होती है। स्वयं गीले में सोकर बच्चे को सूखे में सुलाकर उसका मातृत्व गौरवान्वित होता है, पूरे दिन निर्जला व्रत रखकर पति की लम्बी आयु के लिए वह ईश्वर से प्रार्थना करती है और इस सब के बदले में उसे क्या चाहिए --बस थोडा सा ध्यान और प्यार।
नारी कितनी भी आधुनिक हो जाये उसके हृदय में एक गृहणी अवश्य छुपी होती है जो अवसर आते ही प्रकट हो जाती है क्योंकि नारी और गृहणी स्वाभाविक रूप से एक दूसरे के पर्याय है।नारी आज ऊँचे-ऊँचे पदों पर कार्य कर रही है मगर यदि वह अपने इन स्वभाविक गुणों को भुला दे तो उसकी सारी गरिमा नष्टप्राय होती प्रतीत पड़ती है।
अतः हम नारियों का सदा यह प्रयास होना चाहिए कि हम चाहे कितनी भी प्रगति कर लें, अपने घर -परिवार को सदैव अपनी प्राथमिकताओं में रखें तथा एक गृहणी के गुणों को अपने भीतर सदा कायम रखें।गीतों की पालकी
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