कौन गृहणी नहीं चाहती कि समाज में उसे व उसके घर-परिवार को आदर मिले. मगर यह इस बात पर निर्भर करता है कि समाज में आपके परिवार की छवि कैसी है. आप ने दूरदर्शन पर Asian paint का वह लोकप्रिय विज्ञापन तो अवश्य ही देखा होगा जिसकी मुख्य लाइन है- 'हर घर कुछ कहता है' इस विज्ञापन का सीधा-सीधा अर्थ है घर के दीवारों पर किया गया एशियन पेंट जैसीे उच्च कोटि का पेन्ट उस घर में रहने वाले सदस्यों की सुरुचि का परिचय देता है. यह तो चलो एक विज्ञापन है जिसका उदाहरण हमने यहां प्रतीकात्मक रूप में दिया है पर वास्तव में यह सच है कि हर घर कुछ कहता है. क्या कभी आपने विचार किया है कि आपका घर क्या कहता है? क्या परिचय देता है आपका व आपके परिवार का? कैसी है आपके परिवार की छवि आप के समाज में, आस-पडोस में, घर में आने वाले आतिथियों, आगन्तुकों के बीच. बेस्ट होम
प्रस्तुत है जीवन के सत्य असत्य का विवेचन करती एक आध्यात्मिक कविता 'मन समझ ना पाया'. वास्तव में मन को समझना ही तो आध्यात्मिकता है. यह मन भी अजब है कभी शांत बैठता ही नहीं. जिज्ञासु मन में अलग-अलग तरह के प्रश्न उठते हैं. कभी मन उदास हो जाता है कभी मन खुश हो जाता है. कभी मन में बैराग जागने लगता है कभी आसक्ति . मन के कुछ ऐसे ही ऊहापोह में यह कविता मेरे मन में झरी और मैंने इसे यहां 'गृह-स्वामिनी' के पन्नों पर उतार दिया. पढ़कर आप भी बताइए कि यही प्रश्न आपके मन में तो नहीं उठते हैं. मन समझ ना पाया क्या सत्य है, क्या असत्य मन समझ ना पाया कभी शांत झील सा वीतरागी यह मन तो कभी भावनाओं का अन्तर्मन में झोंका आया क्या सत्य है, क्या असत्य मन समझ ना पाया छोर थाम अनासक्ति का रही झाँकती आसक्ति लगा कोलाहल गया हो गयी अब विश्रांति जगी फिर यूं कामना मन ऐसा उफनाया कैसा तेरा खेल, प्रभु कोई समझ ना पाया क्या सत्य है, क्या असत्य मन समझ ना पाया कैसा जोग, कैसा जोगी बैरागी कहलाये जो बन जाये ...