आध्यात्मिकता यही कहती है कि हम इस शरीर को अपनी पहचान समझते हैं जबकि यह शरीर तो नश्वर है हमारी असली पहचान तो हमारी आत्मा है जो सदा अमर है. इसी भाव को दर्शाती कविता-
झरते हैं तो झर जाएं क्षण
पढ़ें यह कविता भी'सत्य है शममान की राख'
मै कौन हूं? मैं आत्मा हूं जो इस शरीर का संचालन करती है, शरीर की मालिक हूं. शरीर के लिए कहते हैं यह मेरा शरीर है, किंतु यह मैं नहीं हूं मैं तो आत्मा हूं जो अजर अमर अविनाशी है और यह शरीर नाशवान है.
इसलिए हमे अपने मूल आत्मिक गुणों को धारण करना चाहिए, अपनाना चाहिए क्योंकि जो परमात्मा के गुण है वही हम आत्माओं के गुण हैं क्योंकि वही हमारे परम पिता हैं
हमें सदा अपनी आत्मा के दिव्य गुणों को ध्यान में रखते हुए ही प्रत्येक कार्य करना चाहिए ताकि हमारा हर कार्य दिव्य हो, स्वार्थ से रहित हो और हम अन्त समय में परमपिता परमात्मा से नजरे मिला सकें.
तो प्रस्तुत है यह अध्यात्मिक कविता-
झरते हैं तो झर जाएं क्षण
ज्योतिर्बिन्दु |
झरते हैं तो झर जाए क्षण
जीवन मुकुट के मोती से
किन्तु गिरे जब काल-सिन्धु में
किन्तु गिरे जब काल-सिन्धु में
भासित हो नव-ज्योति से
झरने को झर ही जायेंगे
एक-एक कर जीवन के क्षण
किन्तु हो ऐसा यह झरना
जग को दे कर जाये जीवन
एक-एक बिन्दु हो सार-भरा
कृतित्व दमकता हो नव्-द्युति से
झरते हैं तो झर जाए क्षण
जीवन मुकुट के मोती से
समय की नदी कभी ना रीति
यह देह रीत गयी तो क्या
हम सृष्टि के अमर-पुत्र हैं
मृत्यु जीत गयी तो क्या
चाह इतनी बस, आँख मिला
पायें उस भव्य-विभूति से
झरते हैं तो झर जाए क्षण
जीवन मुकुट के मोती से
नव जीवन में नूतन देह का
सुसंस्कारों से ऋंगार करें
कभी ना बन्धन बांध पायें
हम समता का व्यवहार करे
मन की गागर स्वच्छ रहे
गंग-धार बहे उर-कठौती से
झरते हैं तो झर जाए क्षण
जीवन मुकुट के मोती से
किन्तु गिरे जब काल-सिन्धु में
भासित हो नव-ज्योति से------------------------------
यह कविता वीडियो भी अवश्य देखें
काश गर्म का कप होती जिंदगी' कविता
टिप्पणियाँ