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क्या आपको भी कभी ऐसी अनुभूति हुई है कि किसी को देखकर आपको ऐसा लगा हो कि इस शख्स को हम ना जाने कितने जन्मों से जानते हैं कुछ ऐसी ही अनुभूति लिए मेरी यह मौलिक काव्य गीत रचना आपके लिए:-
दार्शनिक कविता पढें-विरोधाभास
खोए से हैं अब तलक हम उस सुवास में
जैसे कोई मिल गया परिचित हमें प्रवास में
गंध बन हमको मिले तुम रूप सरीखे एक कहानी ज्यों उतर आई नभ से, नीचे
बंध रहे हैं हम ना जाने कैसे पाश में
जैसे कोई मिल गया परिचित हमें प्रवास में
रूप कोई भी नहीं नयनों में है छाया हुआ
कौन फिर यह स्मृतियों में आके मुस्काया
क्यों सुधा रस में है भीगे हम अंतर्वास में
जैसे कोई मिल गया परिचित हमें प्रवास में
करती है संकेत अनल हमको अनदेखे हुए
स्पर्शों के रूप हैं पर जाने पहचाने हुए
चांदनी की छिटकी है मन के आकाश में
जैसे कोई मिल गया परिचित हमें प्रवास में
ना कोई रुप, ना दृश्य, ना चाह या आकर्षण
जैसे कोई अपने को ही दे भला क्या आमन्त्रण
सत्य ही होते हैं या होते प्रसंग ये परिहास में
जैसे कोई मिल गया परिचित हमें प्रवास में.
विवाह आदि फंक्शंस पर गाने के लिए चौसर पर लोकगीत --------
सुवास - सुगंध
प्रवास - घर से अलग दूसरी जगह रहना, परदेश
प्रेम की सूक्ष्म व अलौकिक अनुभूति का प्रस्तुतिकरण कविता रूप में.....जैसे कोई मिल गया परिचित हमें प्रवास में
पढ़ें एक और अनुभूति पूरक कविता 'क्षितिज के पार'
इस कविता को प्रेम-गीत भी कहा जा सकता है मगर यह स्थूल प्रेम का गीत नहीं वरन् प्रेम की उस सूक्ष्म व अलौकिक अनुभूति का प्रस्तुतिकरण है जिसका कोई साकार रूप नहीं होता, बस झिलमिल सी एक पहचान, अपनेपन का अव्यक्त सा आभास जिसका सांसारिकता से कोई लेना-देना नहीं होता. शायद पिछले जन्म की कोई पहचान होती होगी इस तरह की अनुभूतियों के पीछे....शायद.क्या आपको भी कभी ऐसी अनुभूति हुई है कि किसी को देखकर आपको ऐसा लगा हो कि इस शख्स को हम ना जाने कितने जन्मों से जानते हैं कुछ ऐसी ही अनुभूति लिए मेरी यह मौलिक काव्य गीत रचना आपके लिए:-
दार्शनिक कविता पढें-विरोधाभास
खोए से हैं अब तलक हम उस सुवास में
जैसे कोई मिल गया परिचित हमें प्रवास में
गंध बन हमको मिले तुम रूप सरीखे एक कहानी ज्यों उतर आई नभ से, नीचे
बंध रहे हैं हम ना जाने कैसे पाश में
जैसे कोई मिल गया परिचित हमें प्रवास में
रूप कोई भी नहीं नयनों में है छाया हुआ
कौन फिर यह स्मृतियों में आके मुस्काया
क्यों सुधा रस में है भीगे हम अंतर्वास में
जैसे कोई मिल गया परिचित हमें प्रवास में
करती है संकेत अनल हमको अनदेखे हुए
स्पर्शों के रूप हैं पर जाने पहचाने हुए
चांदनी की छिटकी है मन के आकाश में
जैसे कोई मिल गया परिचित हमें प्रवास में
ना कोई रुप, ना दृश्य, ना चाह या आकर्षण
जैसे कोई अपने को ही दे भला क्या आमन्त्रण
सत्य ही होते हैं या होते प्रसंग ये परिहास में
जैसे कोई मिल गया परिचित हमें प्रवास में.
विवाह आदि फंक्शंस पर गाने के लिए चौसर पर लोकगीत --------
सुवास - सुगंध
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गीतों की पालकी पढ़ेंपरिहास - मजाक
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