श्रंगार रस सब रसों का राजा है. कविता जगत में श्रंगारिक गीतों का अपना ही एक अलग स्थान है . श्रृंगार रस में रचित प्रस्तुत प्रेम गीत 'समर्पण भावों का ' आपके हृदय को अवश्य ही भायेगा.तो प्रस्तुत है श्रंगारिक प्रेम गीत...सास बहू पर यह लोकगीत पढ़ें
समर्पण भावों का
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समर्पण भावों का, ये विश्वास कम क्यों हैप्यार है तो प्यार का, अहसास गुम क्यों है
प्रेम ना वन-पुष्प, जो कहीं भी खिल जायेपुण्य संचित जन्मों, के जो हम मिल पाये
जब परस्पर थे, मिले, कौंधी ज्यों दामिनी
प्रीत का सूर्य उगा, है उजास कम क्यों है?
केश गजरा बांधे, नैन कजरे से आंजे
हाथ कंगना बाजे, भाल पे बिन्दिया साजे
खोई हो पर कहाँ, खोलो प्रिये, पट हिय के
छवि मंजुल अति, तो उदास मुख क्यों है?
खोल पर खुशियों, के राहें नयी बुलायें
भोर की नव-रश्मि, आशायें नयी जगाये
ज़िन्दगी हंस कर, कहे, आहट प्यार की
मेल रूह का रूह, से, आभास कम क्यों है
अब हँसो मानिनी, बज उठे जो रागिनी
रात भी ढ़ल गयी, चन्दा से मिली चाँदनी
हाथ में हाथ दे दो, स्वप्न को आकार दे दो
प्रेम उत्सव प्रिये, ये उल्लास कम क्यों है
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