प्रस्तुत है एक और कृष्ण भजन जिसे आप लय में सस्वर तथा ढ़ोलक आदि पर भी गा कर किसी भी उत्सव या गीत-संध्या, जागरण या कीर्तन में रंग जमा सकते हैँ. यह भजन कृष्ण विरह का भजन है जिसमें कृष्ण के मथुरा चले जाने पर उनकी याद में माँ यशोदा, गोप-ग्वालों, गोपियों और राधा तथा गायों की व्याकुलता को दर्शाता है. तो प्रस्तुत है आप के लिए जन्माष्टमी के अवसर पर..
कृष्ण भजन- भोली यशोदा लुट गई रे कन्हाई तेरे प्यार में
Krishna Ka Mathura gaman |
इससे पूर्व भी जन्माष्टमी पर गृह-स्वामिनी ब्लाग पर दो भजन आपने पढे होगे. आशा है आपको अवश्य पसन्द आये होंगे.
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तो पढ़िये यह नया भजन और झूमिये, गाइये और डूब जाइये भक्ति रस में.......
भोली यशोदा लुट गई, रे कन्हाई तेरे प्यार में
मुख मोड़, गया निर्मोही, रहा क्या घर- बाहर में
ज्ञान पढ़ाया तूने बेटा, लाख जतन से संजोऊँ
फिर भी अंखियां माने ना, तुझे याद करूं औ रोऊँ
कुछ भी ना देखना चाहे, ये छवि तेरी निहार के
माँ की ममता लुट गई, तुझ पर बालिहार के.
गैय्या रम्हा रम्हा के पूछे, कहाँ गया मुरली वाला
रोती को मुझे और रूलायें, गोकुल की सबरी बाला
प्रेम की मारी लुट गईं, बेचारी ये तेरे प्यार में
दें उलाहने मुझे, कभी, रोवे तुझको पुकार के
लौनी-चोरी, छीना-झपटी,हर दिनफोड़ी मटकी
कुछ तुझको याद नहीं, सब भुला दिया, कपटी
ग्वाले, कुम्भकार, हो गये, व्यापार, ठप्प बाजार में
कहाँ जायें यादों के मारे, कान्हा तुझको बिसार के.
राधा डोले यमुना तीरे, जहाँ जहाँ रास रचाया
मधुवन के बूटे-बूटे, में बंशी का स्वर समाया
रुप रंग रस ना भावे, ना मन लागे श्रंगार में
ब्रज किशोरी लुट गयी, तुझ पे जान निसार के.
नंद बाबा बैठ विचारे, कहता था जिसको बेटा
कौन है वह, जग सारा, जिस को ईश्वर कहता
कौन से पुण्य किये मैने, कहता बाबा पुकार के
खेला करता था अंगना, होता मैं मुग्ध निहार के
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