कुछ व्यक्तित्व अपने परिश्रम, दृढ़ता व जीवन में तोड़ देने वाली विषम परिस्थितियों में भी संभलने की दृढ़ इच्छाशक्ति के बल पर संपूर्ण मानव जाति के लिए एक प्रेरणा स्तंभ बन जाते हैं,
उन्हीं में से एक नाम है -- हमारी नवनिर्वाचित आदिवासी समुदाय से आने वाली प्रथम महिला तथा भारत की पन्द्रहवीं राष्ट्रपति 'द्रोपदी मुर्मू' का. नारी जाति को तो इनसे विशेष रूप से प्रेरणा लेनी चाहिए.
भारत की 15वीं महामहिम द्रौपदी मुर्मु
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आज इंटरनेट पटा पड़ा है महामहिम द्रौपदी मुर्मु के जीवन परिचय व यशगान सम्बन्धी खबरों और सूचनाओं से. उनके विषय में अनेक वेबसाइट्स, सोशल मीडिया, प्रिंट मैगजीन, व अखबारों में लिखा जा रहा है किन्तु यहां हम विशेष रूप से द्रौपदी मुर्मूजी के जीवन के उन पहलुओं के बारे में चर्चा करेंगे जो किसी भी नारी को या कहना चाहिए कि नारी पुरूष हर किसी को विषम परिस्थितियों में भी आगे बढ़ने के लिए प्रेरित करने वाले है और यह भी कि दृढ़ इच्छाशक्ति के बल पर क्या नहीं किया जा सकता.
राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मु के जीवन के प्रेरणादायक प्रसंग--
द्रौपदी मुर्मू का राष्ट्रपति बनना सामाजिक न्याय के क्षेत्र में बड़ा कदम है वह एक ऐसी आदिवासी महिलाएं जो अपनी क्षमता से इस सर्वोच्च पद पर पहुंच रही है.
राष्ट्रपति मुर्मु ने अपने संघर्षपूर्ण जीवन में अभूतपूर्व सफलता की जो कहानी लिखी वो उनके व्यक्तित्व की निम्न विशेषताओं
को बताती हैं:-
1. दृढ़ व्यक्तित्व की स्वामिनी--
उनके जीवन की अनेक घटनाएं उनके दृढ़ व्यक्तित्व की परिचायक हैं
• द्रौपदी मुर्मू का बचपन बहुत अभाव व गरीबी में बीता. एक आदिवासी संथाल जनजाति परिवार में उनका जन्म हुआ. उनके पिता बीरांची नारायण टुन्डू किसान थे. सातवीं तक की पढ़ाई उन्होंने अपने गांव के ही एक छोटे से आदिवासी स्कूल में की. उस समय लड़के भी पढ़ाई के प्रति इतनी रुचि नहीं रखते थे लेकिन उन्होंने एक लड़की होते हुए भी अभाव की परिस्थिति में भी अपने गांव से 300 किलोमीटर दूर भुवनेश्वर में जाकर स्नातक की पढ़ाई की. वह अपने गांव की पहली स्नातक महिला थी. उन्होंने दिखा दिया कि जहां चाह होती है वहां राह मिल ही जाती है और इस तरह सब लड़कियों के लिए एक उदाहरण प्रस्तुत किया. यह उनकी दृढ़ शक्ति का ही परिचायक था जिससे सब को सीख लेनी चाहिए विशेषतया लड़कियों को ताकि उनका लड़की होना उनकी सफलता में कभी भी बाधक ना बने.
• इसके अलावा भी जब वह अपने गांव में स्कूल में पढ़ती थी तो अपनी कक्षा में सबसे मेधावी छात्रा थी. क्लास में लड़कों को ही मॉनिटर बनाया जाता था. लड़कों की संख्या 36 और लड़कियों की संख्या 8 थी किंतु द्रौपदी मुर्मु मॉनिटर बनने के लिए अड़ गयीं क्योंकि वह कक्षा की सबसे मेधावी छात्रा थी और उनकी बात उचित होने के कारण सबको माननी ही पड़ी. बात भले ही छोटी हो लेकिन यह घटना द्रौपदी मुर्मु की अन्याय सहन ना करने की, संघर्षों से लड़ने की तथा अपनी बात पर दृढ़ रहने की प्रवृत्ति को दर्शाता है जिससे सभी लड़कियों को प्रेरणा लेनी चाहिए.
• द्रौपदी मुर्मु जब कॉलेज में पढ़ती थी तो श्याम चरण मुर्मू नामक युवक और द्रौपदी मुर्मु एक दूसरे को पसंद करने लगे थे किंतु द्रौपदी के पिता विवाह के लिए नहीं माने. यह अड़ गईं कि विवाह करेंगे तो इसी युवक से ही. श्याम चरण मुर्मू ने उनके पिताजी को मनाने के लिए उनके गांव में 3 दिन तक डेरा डाले रहे और दोनों ने आखिरकार उनके पिता को मना ही लिया. इससे पता चलता है कि द्रौपदी मुर्मू अपने संकल्पों की कितनी पक्की है.
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2. सतत संघर्षरत् और परिश्रमशील---
द्रौपदी मुर्मू ने अपने जीवन में बहुत संघर्ष और परिश्रम किया. अपनी बेटी को बढ़ाने के लिए इन्होंने टीचर की नौकरी की. उससे पूर्व स्नातक शिक्षा पूर्ण होने के बाद उन्होंने उड़िया साथ-साथ सरकार में भी बिजली डिपार्टमेंट में जूनियर असिस्टेंट के तौर पर नौकरी की थी.
3. महत्वाकांक्षी और निरंतर प्रगति के पथ पर---
द्रौपदी मुर्मू ने अपने परिश्रम और संघर्ष के बल पर निरन्तर राजनैतिक उपलब्धियां प्राप्त करती ची गयीं. उन्होंने प्रगति के पथ कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा. हर नारी को उनसे प्रेरणा लेनी चाहिए कि अगर ठान ले तो नारी क्या नहीं कर सकती.
द्रौपदी मुर्मु की राजनैतिक उपलब्धियां...
• द्रौपदी मुर्मू ने साल 1997 में रायरंगपुर नगर पंचायत से पहली बार पार्षद् चुनाव जीत अपने राजनीतिक जीवन का प्रारंभ किया. फिर वह राजनीतिक उपलब्धियों की बाढ़ ही लग गई.
• उसके बाद भारतीय जनता पार्टी के अनुसूचित जनजाति मोर्चा की उपाध्यक्ष तथा भाजपा के आदिवासी मोर्चा की राष्ट्रीय कार्यकारिणी सदस्य बनीं.
• द्रौपदी मुर्मु उड़ीसा के मयूरभंज जिले की रायरंगपुर सीट से 2 बार भाजपा के टिकट पर विधायक भी बनीं.
मुर्मु उड़ीसा की सर्वश्रेष्ठ विधायक भी चुनी गई जिसके लिए उन्हें नीलकंठ पुरस्कार भी मिला
• फिर उड़ीसा मौजूद नवीन पटनायक की पार्टी बीजू जनता दल से भाजपा गठबंधन की सरकार में साल 2000 और 2004 के बीच वाणिज्य परिवहन और बाद में मतस्य और पशु संसाधन विभाग में मुर्मु को मंत्री बनाया गया.
• 2015 में द्रौपदी मुर्मु झारखंड की राज्यपाल बनी.
• और अंत 2022 में सब को विदित ही हैं कि अब वह हमारे भारत की पन्द्रहवीं महामहिम हैं.
नारी के रूप में उनकी इतनी उपलब्धियां वास्तव में ही हम नारियों के लिए गौरव का विषय है और साथ-साथ उनसे अत्यधिक प्रेरणा लेने का अवसर भी है.
4. टूट कर भी ना बिखरने वाला व्यक्तित्व--
द्रौपदी मुर्मु ने जहां इतनी अधिक राजनैतिक और सामाजिक उपलब्धियां प्राप्त की, उनका पारिवारिक जीवन उतना ही दुखद रहा.
प्रारम्भ में उनकी 4 साल की बेटी खत्म हो गई. फिर 25 अक्टूबर, 2010 मैं उनके 25 वर्षीय बड़े बेटे लक्ष्मण का असमय निधन हो गया. वही 2 जनवरी दो हजार 2013 को छोटे बेटे की एक दुर्घटना में मृत्यु हो गई. 1 अगस्त 2014 को उनके पति श्याम चरण मुर्मु का भी निधन हो गया. मात्र चार वर्ष के अन्तराल में एकसाथ पति और बेटों को खोने के पहाड़ जैसे दुख के कारण द्रौपदी मुर्मु बिल्कुल टूट गई किंतु फिर उन्होंने अपने को संभाला और मानसिक संबल के लिए ब्रह्माकुमारी संस्था से जुड़ गई.
ब्रह्माकुमारी संस्थान में राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मु |
मेडीटेशन से उनकी हालत संभली. वह हमेशा ब्रह्माकुमारी संस्था की किताब अपने साथ रखती हैं और बड़े नियम से ध्यान करती हैं जिससे उनको अपने दुख से उबरने में बहुत सहायता मिली.
द्रौपदी मुर्मू जी ने पहाड़पुर में पति व दोनों बेटों की समाधि बनवाई है और साथ ही अपनी जमीन का एक बड़ा हिस्सा स्कूल के लिए भी दान करा है.
उनका जीवन दुखों से उबर कर जीवन पथ पर आगे बढ़ने की प्रेरणा देता है.
5. ऐसी उपलब्धियां प्राप्त करने का श्रेय जो प्रथम बार में ही प्राप्त हुई है-
द्रौपदी मुर्मू की उपलब्धियों के साथ 'प्रथम बार' शब्द अनेक जगह जुड़ा हुआ है अर्थात उन्होंने वे कार्य किए जो प्रथम बार उन्होंने ही किए थे. जैसे--
* अपने गांव की वह पहली लड़की थी जिसने स्नातक की डिग्री ली.
* झारखंड राज्य की पहली महिला राज्यपाल बनने की उपलब्धि भी द्रौपदी मुर्मू ने ही प्राप्त की है.
* और अब आदिवासी जनजाति से प्रथम बार द्रौपदी मुर्मु के रूप में कोई महिला भारत की राष्ट्रपति बनी है.
* भारत की सबसे कम उम्र की महिला राष्ट्रपति बनने का गौरव भी द्रौपदी मुर्मु को प्राप्त हुआ है.
भारत की वह आजाद भारत में जन्म लेने वाली पहली राष्ट्रपति है.
* और राष्ट्रपति के रूप में अब देश की प्रथम नागरिक तो वह है ही.
इससे प्रेरणा मिलती है कि लीक से हटकर कुछ करने से भी उपलब्धियां प्राप्त होती है. बनी बनाई लकीर पर तो सभी चल लेते हैं लेकिन कुछ अलग करने में भी श्रेष्ठता और सम्मान हिस्से में आता है. और एक स्वतंत्र व्यक्तित्व रखने वाला व्यक्ति ही यह सब प्राप्त कर सकता है.
इसके अलावा और भी अनेक ऐसे प्रसंग है जो राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू के जीवन की श्वेता वाह महानता को प्रदर्शित करते हैं और हमें तथा अन्य राजनीतिज्ञों को भी प्रेरणा देते हैं...
> द्रौपदी मुर्मू का राष्ट्रपति बनना सामाजिक न्याय क्षेत्र में एक बड़ा कदम है वह ऐसी आदिवासी महिला है जो अपनी क्षमता से सर्वोच्च पद पर पहुंच गई है किसी व्यक्ति की परीक्षा बड़ा पद पाने के बाद अपने समाज के लोगों से उसके व्यवहार से होती है झारखंड का राज्यपाल रहते हुए उन्होंने आदिवासियों के हितों के विरुद्ध अपनी ही सरकार का हाथ रोक दिया था और भाजपा के द्वारा पारित किए एक विधेयक पर हस्ताक्षर करने से मना कर दिया था क्योंकि वह विधेयक आदिवासियों जनजाति के हितों के विरुद्ध था.
और फिर उन्होंने राज्यपाल के सुख सुविधा पूर्ण जीवन के स्थान पर आदिवासी लोगों के बीच लौटकर काम करने को प्राथमिकता दी.
राज नेत्री और फिर उसके ऊपर एक नारी के रूप में उनके इस कदम से हर राजनेता और महिलाओं को न्यायिक दृढ़ता और सुख सुविधाओं से ऊपर उठने की भी प्रेरणा अवश्य लेनी चाहिए.
> सादा जीवन उच्च विचार.. द्रौपदी मुर्मू बिल्कुल शाकाहारी है और प्याज लहसुन कुछ भी नहीं खाती है. भोजन भी उन को सादा पसंद है.
> स्वच्छता को लेकर उनका दृढ़ संकल्प.. जब वह 1997 में पार्षद की हिफाजत बनने के बाद में रायपुर की स्वच्छता समिति की उपाध्यक्ष बनाई गई थी तो सुबह से ही वे सड़कों पर यह देखने के लिए मुस्तैद रहती थी कि साफ सफाई का काम ढंग से हो रहा है या नहीं.
> सनातन धर्म में उनकी गहरी आस्था.. जब वह रायरंगपुर में रहती है तो महुलडीहा से कुछ दूरी पर स्थित शिव मंदिर में आराधना करने जरूर जाती है और पूजा करने से पहले सारे मंदिर के परिसर की सफाई एवं करती है.
> व्यसनों से मुक्त जीवन.. द्रौपदी मुर्मू केवल फोन करने और सुनने के लिए ही फोन का प्रयोग करती है. उन्हें बेवजह के ऐसे ऐप बिल्कुल पसंद नहीं है जिनकी लत पड़ जाए. वह मुश्किल से ही टीवी देखती है. केवल बच्चों के म्यूजिक रियलिटी शो ही देखती है. द्रौपदी मुर्मु ने केवल एक ही बार सिनेमा देखा है.
वह थी उड़ीसा भाषा की पहली रंगीन फिल्म 'गापा हेले बी साता'.
आज की हर समय फोन पर लगी रहने वाली महिलाओं को उनसे शिक्षा लेनी चाहिए.
> मुर्मु आदिवासी संस्कृति की अच्छी जानकारी रखती हैं और पारंपरिक आदिवासी नृत्यों में निपुण हैं.
निष्कर्ष--
निष्कर्ष में कहा जा सकता है कि एक आदिवासी परिवार से आने वाली महिला के रूप में द्रौपदी मुर्मु का भारत का राष्ट्रपति बनना हमारे देश के लोकतंत्र के गौरव को महिमा मंडित करता है कि यही सच्चा लोकतंन्त्र है. महिला हो या पुरुष, किसी भी जाति से हो, किसी भी राज्य या क्षेत्र से हो, हमारे देश में हर व्यक्ति अपनी योग्यता व परिश्रम के बल पर देश के सर्वोच्च पद पर आसीन हो सकता है तो क्यों ना हम सभी स्त्री व पुरुष अपनी नवनिर्वाचित महामहिम द्रौपदी मुर्मु जी के व्यक्तित्व से यह प्रेरणा लें कि हम भी अपने चरित्र, परिश्रम व योग्यता को इतना आगे ले जाएं कि हमें भी कुछ बन कर देश की सेवा करने का अवसर मिले.
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