अपने बच्चों के जीवन के प्रति एक माँ की भावना में सदा बच्चों का कल्याण ही नीहित होता है. एक माँ की ऐसी ही भावनाओं को व्यक्त करती है यह कविता 'मैं माँ हूँ'....
एक मां ही अपने बच्चों के लिए इस प्रकार से सोच सकती है कि वह अपने बच्चों को दुनिया का हर सुख देना चाहती है और उनका जीवन प्रकाशमय बनाना चाहती है.
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प्रस्तुत कविता में किसी भी मां की यही भावना व्यक्त होती है
कविता- मैं माँ हूँ
मैं माँ हूँ
सोचती हूं
हर समय
आमदनी कैसे बढ़े
कैसे पैसे बचें
क्योंकि बिना धन के
मेरी ममता का
कोई मोल नहीं
बिन साधन
भावनाओं का
कोई तोल नहीं
धन के बिना
कैसे दे पाऊंगी
मैं अपने बच्चों को
उनका भविष्य
उनके सपने
नहीं देखी जाती
मुझसे
समय से पहले
उनकी समझदारी
उमंगों को
मुट्ठी में
भींच लेने की लाचारी
मैं नहीं
देना चाहती
उन्हें ऐसी समझदारी
ऐसी दुनियादारी,
ऐसे संस्कार
कि मन को मार
वो स्वयं को
समझे समझदार
मैं माँ हूँ, बस माँ
उनकी मुट्ठी में
देना चाहती हूँ
उनका आकाश
परों को उड़ान
मन मानस में प्रकाश
मैं रखना चाहती हूँ
उन्हें अंधेरों से दूर
बहुत दूर.
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