आप के मनोरंजन के लिए प्रस्तुत है हमारे नये स्तम्भ गीतों की जुुुुुबानी मेंं गीतों के माध्यम से रची एक मनोरंजक प्रेम कहानी-
'गीतों की जुबानी' स्तम्भ के अन्तर्गत आपके मनोरंजन के लिए हम गीतों के माध्यम से नयी नयी मनोरंजक कहानियां प्रस्तुत करेंगे. आशा है आप को हमारा यह नया स्तम्भ अवश्य पसन्द आयेगा. इस बार पढ़िये..
प्रेेम कहानी गीतों की जुबानी- मैं तो छोड़ चली बाबुल का देश
'मैं तो छोड़ चली बाबुल का देश
पिया का घर प्यारा लगे'
सुहाने सपनों के झूले में झूलती रचना जल्दी से जल्दी यह खबर अपनी प्यारी सखी रश्मि को सुनाने को बेताब थी.
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कल ही सपनों के राजकुमार सा सुंदर सजीला केशव अपनी मां के साथ उसे देखने आया था. मां बेटे को रश्मि पसन्द आ गयी थी और वे रश्मि को अँगूठी पहना कर झटपट मंगनी की रस्म भी सम्पन्न कर गये. जल्दी से जल्दी शादी की तारीख निकलवाने के लिए कह कर वो लोग चले गए थे.
'ख्वाब हो तुम या कोई हकीकत
यह सब इतना आकस्मिक हुआ था कि रचना को यही लग रहा था कि वह नींद में है और कोई ख्वाब देख रही है.
रचना रश्मि के घर पहुँची तो रश्मि और स्वप्निल दोनों भाई बहन चाय पीते हुए टीवी देख रहे थे. स्वप्निल रश्मि के 2 साल बड़ा था. दोनों भाई बहन और रचना में बहुत पटती थी. तीनों पिक्चर व पिकनिक का प्रोग्राम अक्सर साथ ही बनाया करते थे.
रश्मि को देखते ही स्वप्निल गुनगुना उठा...
'यह कौन आया, रोशन हो गयी
महफिल जिस के नाम से'
उन तीनों के बीच अक्सर ऐसी चुहलबाजी होती ही रहती थी मगर आज ये पंक्तियां सुन कर रचना शर्मा गयी.
उसकी इस शर्मिली अदा ने उसके सौन्दर्य को द्विगुणित कर दिया.
स्वप्निल के मन में उसकी शर्मिली अदा देख कर तरंगें सी उठने लगी और उसे लगा कि अब रचना से अपने मन की बात कह ही देनी चाहिए.
स्वप्निल का मन हो रहा था कि अभी रचना का हाथ थाम कर पूछ ले कि-
'यूं ही तुम मुझसे बात करती हो
या कोई प्यार का इरादा है'
तभी शर्माती-सकुचाती रचना ने ये पंक्तियां गाते हुए अपनी शादी पक्की होने का संकेत देना चाहा...
'हम छोड़ चले हैं महफिल को
याद आये कभी तो रो लेना'
सुनकर दोनों एक पल को चौक गये. समझने में दो पल लगे, फिर अगले ही पल रश्मि चिहुँक पड़ी पर फिर एकदम उसे स्वप्निल का ख्याल आ गया जो यह सुनकर अवाक् बैठा था.
'चाँद को क्या मालूम
चाहता है उसे कोई चकोर
वो बेचारा दूर से देखे
करे ना कोई शोर'
कल से ही रश्मि बात बेबात पर स्वप्निल को रचना का नाम ले ले कर छेड़ रही थी. उसे कल ही स्वप्निल की अलमारी में एक किताब ढूंढ़ते हुए उसकी डायरी में रचना की फोटू मिली थी जिसे स्वप्निल ने शायद रश्मि की एलबम से उड़ा लिया था.
'तू प्यार है किसी और का
तुझे चाहता कोई और है'
अचानक स्वप्निल को ना जाने क्या हुआ कि वह अपनी जगह से उठ रचना का हाथ थाम कर बड़ी दर्दीली आवाज में कह उठा-"नहीं रचना, तुम मेरी हो. क्या तुमने मेरी आँखों में कभी अपने प्रति चाहत को नहीं पढ़ा?"
खुशियों के हिंडोले में झूलती रचना को मानो एक झटका सा लगा जैसे अचानक वह आकाश की ऊँचाइयों से जमीन पर गिर पड़ी हो.
पसन्द तो वह भी स्वप्निल को करती थी पर एक लापरवाह से अन्दाज़ में. उसके प्रति अपनी चाहत का उसे अन्दाजा ही नहीं था.
आज स्वप्निल ने रचना के समक्ष उसके लिए अपनी चाहत व्यक्त कर रचना के मन में भी अपने प्रति अनजानी सी मुहब्बत को जगा दिया था. मगर अब क्या हो सकता था...
'हुजूर आते आते बहुत देर कर दी'
रश्मि स्तब्ध सी बैठी दोनों को ऐसे देख रही थी मानो उसके सामने कोई फिल्म की रील चल रही हो.
रचना ने धीरे से अपना हाथ स्वप्निल के हाथों से छुड़ाया. उसकी आँखें डबडबायी हुई थी और अधर कंपकंपा रहे थे...
'हमने देखी है इन आँखों की
महकती खुशबू
हाथ से छू के इन्हें
रिश्तों का नाम ना दो,
सिर्फ एहसास है यह
रूह से महसूस करो'
अब तक स्वप्निल भी होश में आ चुका था. अपनी खामोश मुहब्बत का दर्द लिए बस वह इतना ही कह सका--
'खुश रहे तू सदा
तू जहाँ भी रहे'
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