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आधुनिक परिवेश पर एक कविता- हर दिल में है एक चमन

आधुनिक परिवेश में रिश्ते-नातों की गर्माहट खोती जा रही है. हर कोई भौतिकता की दौड़ में भागा जा रहा है. हर कोई इन्टरनेट पर व्यस्त है. एक दूसरे से मिलने का समय ही नहीं है किसी के पास. इसी माहौल को दृष्टि में रखते हुए एक मौलिक कविता 'हर दिल में है एक चमन'...

प्रस्तुत है  कविता आधुनिक परिवेश पर....

आशा है कविता आपको अवश्य पसन्द आयेगी.
 

हर दिल में है एक चमन

Adhunik-parivesh-pr-ek-kavita
हर दिल में है एक चमन फूल पर खिलते नहीं
हर दिल में है एक चमन
फूल पर खिलते नहीं
बुन गए जाल इतने
झोंके रुख करते नहीं

सुने पोडकास्ट "मेरी कविता की डायरी पर दो कदम तो चलो साथ मेरे

मर गया आंखों का पानी
संवेदना की पिघलन कहाँ
लाज-शर्म, भाव कोमल
प्यार की तड़पन कहाँ

है किसे फुर्सत जो रुक
झांक ले दिल में किसी के
दौड़ती जा रही जिंदगी
हौड़ में बस आगे आगे

संबंधों की खनक अब
कल की बीती बात हुई
हृदयों में खिंची लकीरें
विरासते बर्बाद हुई

बँट गए दरों-आंगन
बँट गए हैं दीया-बाती
भौतिकता की दौड़ में तो
दुख-सुख भी कहाँ सांझी

सब कुछ पास हमारे
पर जिंदगी उदास है
वो रौनकें वह बेफिक्री
अब सब बारंबाट है
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अच्छी काव्य रचनाएं पढ़े...

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