कविता--
सत्य है
शमशान की राख
मगर क्या
जीवन के विस्तार में
राख की चादर को
ओढ़ा जा सकता है,
क्या मृत्यु की विभत्सता में
जीवन को जीया
जा सकता है
सौंदर्य उघाड़ने में नहीं
आवरण में है,
सौंदर्य स्मरण में नहीं
विस्मरण में है
और जहां सौंदर्य नहीं
वहां जीवन भी नहीं
जीवन तो
उमंगों का उत्सव है
कौन याद रखे
शमशान की नीरवता
जीवन तो
कामनाओं का समंदर है
भावनाओं का निर्झर है
जीवन कोई
मरुस्थली भावशून्यता नहीं
बहती नदियों की
कल कल है
यह माया ही जीवन है,
कठोर सत्य का
मासूम अवगुंठन
माया से जो गुजरा है
वही जान पाता है
क्या है
सत्यम शिवम सुंदरम
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सत्य है शमशान की राख
सत्य है
शमशान की राख
मगर क्या
जीवन के विस्तार में
राख की चादर को
ओढ़ा जा सकता है,
क्या मृत्यु की विभत्सता में
जीवन को जीया
जा सकता है
सौंदर्य उघाड़ने में नहीं
आवरण में है,
सौंदर्य स्मरण में नहीं
विस्मरण में है
और जहां सौंदर्य नहीं
वहां जीवन भी नहीं
जीवन तो
उमंगों का उत्सव है
कौन याद रखे
शमशान की नीरवता
जीवन तो
कामनाओं का समंदर है
भावनाओं का निर्झर है
जीवन कोई
मरुस्थली भावशून्यता नहीं
बहती नदियों की
कल कल है
यह माया ही जीवन है,
कठोर सत्य का
मासूम अवगुंठन
माया से जो गुजरा है
वही जान पाता है
क्या है
सत्यम शिवम सुंदरम
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