मां के गर्भ में स्थितभ्रूण कन्या का अपनी मां से निवेदन, एक विनती मार्मिक कविता के रूप में.....
बेटियों को जन्म देने के बारे में समाज की सोच में हालांकि अब काफी सकारात्मक परिवर्तन हुआ है फिर भी कन्या-भ्रूण हत्या की घटनाएं गाहे-बगाहे सुनने में आ ही जाती है. प्रस्तुत कविता में समाज की इसी सोच पर चोट करने की कोशिश की गयी है.
कन्या भ्रूण हत्या पर मेरी यह कविता आपके समक्ष प्रस्तुत है-
कन्या-भ्रूण हत्या
बेटी बन कोख में आ गई मैं तो क्या
नाम रोशन तेरा मैं करूँ देखना
तेरी परछाई बन मैं रहूँ देखना
बेटे से कम ना मुझको विचारो मां
बेटी बन कोख में आ गई मैं तो क्या
अपने नन्हें मुन्ने के लिए खरीदें प्यारा सा गिफ्ट
मैं नारी तो हूं मगर अबला नहीं
ब्याह व पति ही मेरा सपना नहीं
शिक्षा पा धन यश कमाऊँ देखना
गर्व मुझपेे करोगी मां, कभी देखना
बोझा मान ना मुझको धिक्कारो मां
बेटी बन कोख में आ गई मैं तो क्या
तुम ना संजोना दहेज का पिटारा
दो सुसंस्कार, अपना विश्वास सारा
रूड़ियों को मिटाऊँ मां मैं तुम देखना
कुल की सुकीर्ति फैलाऊँ, मां देखना
नारी की शक्ति को ना तुम नकारो मां
बेटी बन कोख में आ गई मैं तो क्या
नाम तुमने सुना होगा ऐ मेरी मां
सुनीता, कल्पना, नेहा मेहवाल का
हौसलों के परों से मैं भी उड़ूँ देखना
नूतन इतिहास मां मैं गडूँ देखना
पुराने मिथकों को अब नकारो मां
बेटी बन कोख में आ गई मैं तो क्या
मां तेरा अपना ही तो मैं खून हूं
प्यार की मीठी मीठी सी एक धुन हूँ
तेरे पर्वों की शोभा मां बनूंगी देखना
अंगना में संगीत बन घुलूंगी देखना
मन की आंखों से मुझको निहारो मां
बेटी बन कोख में आ गई मैं तो क्या
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