कविता--
अक्सर मुखड़े तो रच जाते हैं
प्रस्तुत है आपके लिए एक साहित्यिक कविता ....
अक्सर मुखड़े तो रच जाते हैं
अक्सर मुखड़े तो रच जाते हैं
पर अंतरे ढूंढने पड़ते हैं
जिंदगी छोड़ जाती कुछ प्रसंग
कुछ मुखड़े क्यों ऐसे होते हैं
बस मुखड़े ही वो रह जाते हैं
गीत नहीं कोई आगे बन पाता
शब्द बस पन्नों में ही खो जाते हैं
यह जीवन भी कुछ ऐसा ही है
भांति-भांति के रहते लोग यहां
कोई तो लय बन मन को मोहे
कोई है बस वर्णों का योग यहां
नहीं किसी को नसीब हाशिए भी
औ कुछ सुर्खियों में सज जाते हैं
कोई रहे बीनता राह के कांटे
किसी के लिए रास्ते मुड़ आते हैं
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