प्रस्तुत है आपके लिए 2 सारगर्भित कविताएं जिन्हें पढ़कर आपके भीतर दार्शनिक भाव उत्पन्न होने लगेंगे और आप कुछ सोचने पर मजबूर हो जाएंगे.
ये कविताएं मेरे दिल की गहराई से उत्पन्न हुई है और मेरी स्वरचित कविताएं है.
'सूर्योदय का सच' एवं 'यथार्थ'. दोनों ही बड़ी सारगर्भित एवं गंभीर कविताएं हैं.
तो प्रस्तुत हैं दो कविताएं ....
1. सूर्योदय का सच
य़दा-कदा मन में उठने वाले नकारात्मक विचारों को दूर करने के लिए सूर्योदय के प्रकाश व ऊर्जा से बढ़ कर अन्य कुछ नही. हर रात के बाद दिन के अवश्य ही निकलने का एहसास हृदय को पूर्ण सकारात्मकता से भर देता है और तब नकारात्मकता भी अस्तित्वहीन हो नज़र के टीके के समान मात्र रक्षा करने वाली बन पड़ती है. इन्हीं भावों को व्यक्त करती कविता...
जब कभी
भीतर मेरे
बहुत गहरे
अंधकार कुलबुलाता है
मैं प्रतीक्षा करती हूँ
प्रभात होने की
बहुत गहरे
अंधकार कुलबुलाता है
मैं प्रतीक्षा करती हूँ
प्रभात होने की
और सुबह होते ही
उंडेल लेती हूँ
सूर्योदय का सच
अपने अंतर में
उलीच कर सारे
अंधे रिक्त एहसास
इनकी नियति
रह जाती है
मात्र अब
मेरे उज्जवल भाल का
धिठौना बनना.
(2)
उलीच कर सारे
यथार्थ
सपने देखना अच्छी बात है किंतु यथार्थ की धरती पर पांव जमे रहने चाहिए. अगर अपने यथार्थ से ध्यान हटाकर केवल सपनों की दुनिया में आदमी खोया रहे तो जाए तो जीवन अनेक विसंगतियों तथा विडम्बनाओं का शिकार हो जाता है. इसी भाव को व्यक्त करती यह सारगर्भित कविता.....
यथार्थ की धरती पर
जमे पाँवजब आकाश में
उड़ने लगते हैं
ऐसा ही होता है
सपनो के पंख
कट जाते हैं
सब धोखा लगता है
यथार्थ की धरती
बहुत खुरदुरी है
पर शाश्वत है
माँ की गोद की तरह,
काँटों की तरह
आँचल थाम लेती है
मगर
अपनाये जाने का सुख देती है
सपनो की दुनिया
लुभावनी है
उडा ले जाती है
आकाश की ऊँचाइयों तक
हर ऊंचाई के बाद
मगर
उतरना ही होता है ना
कचोट जाती है
फिर
ठुकराए जाने की
अनुभूतियाँ
चलने का अभ्यास भी तो
नहीं रहता
क्योंकि
उड़कर आये थे ना
सपनो के उड़न-खटोले पर
और फिर
पैरो तले का यथार्थ भी
सरकने लगता है,
शेष कुछ भी नहीं रह जाता
कुछ भी तो नहीं.
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