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क्या इंटरनेट आपकी जिंदगी का भी एक महत्वपूर्ण हिस्सा बन गया है.....Debate

जी हां, आज के युग में आप की, मेरी, इसकी, उसकी भला किसकी जिंदगी का सबसे अधिक महत्वपूर्ण हिस्सा  नहीं है इन्टरनेट

Entertainment

शिक्षित, अशिक्षित, बच्चे, युवा, प्रौढ़,  बूढ़े हर कोई इन्टरनेट  का दिवाना है और हो भी क्यों ना?

क्यों कि इन्टरनेट की बदौलत ही--

'मेरी आंखों में सिमट आया है संसार सारा 

क्या क्या देखूं सब ओर नजारा ही नजारा'


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इन्टरनेट हर किसी की जिन्दगी का एक हिस्सा

  • इन्टरनेट की वजह से अशिक्षित शिक्षित हो रहे हैं, शिक्षित आलराउन्डर हो रहे हैं. युवा प्रगति के नये आयाम गढ़ रहे हैं. वृद्ध और रिटायर्ड लोगों का खाली समय इन्टरनेट के माध्यम से नयी नयी स्किल्स सीखने में व्यतीत हो रहा है जिससे उनका खालीपन भी आराम और उत्साह में बदल जाता है.
  • घर पर बैठने वाली गृहणियों के हौसलें भी आज इन्टरनेट की वजह से बुलन्द है. अपनी प्रतिभा और महत्वाकांक्षाओं को साकार रूप देने के लिए उन्हें अब घर से बाहर भी जाने की आवश्यकता नहीं है. इन्टरनेट पर यू ट्यूब, ब्लाॉगिंग और घर से जाॉब करने की सुविधा प्रदान करने वाले अनेक  प्लेटफार्म है जिन्होंने हर किसी के सपनों को नये पंख प्रदान कर दिये है. आर्थिक रूप से भी और  रचनात्मकता की दृष्टि से भी.

कहा जा सकता है कि--

'आकाश मेरी मुट्ठी में उतर

हौसले बुलंद कर गया 

क्या कहूं जुबां से इंटरनेट 

क्या-क्या नजर कर गया'

बच्चे भी तो आजकल खिलौनों से नहीं खेलते. मोबाइल ही चाहिए उन्हें भी खेलने के लिए.

वास्तव में इंटरनेट इस आधुनिक युग में एक क्रांति लेकर आया है. आज संसार इंटरनेट पर ही टिका हुआ है. यदि 1 घंटे के लिए भी इंटरनेट बंद हो जाता है तो सारी गतिविधियां रुक सी जाती है.

प्रत्येक क्षेत्र की जानकारी घर बैठे ही उपलब्ध-- 

मनोरंजन, शिक्षा, खेल विज्ञान, अध्यात्म, चुनाव, राजनीति, चर्चित व्यक्तियों की सुर्खियां, इतिहास, पर्यटन, देश-विदेश, विदेश नीति, भविष्यवाणियां व्यापार,  रोजगार आदि कौन सा ऐसा क्षेत्र है जिससे इंटरनेट हमें अछूता रखता है? घर बैठे ही हमें हर क्षेत्र की जानकारियां और सूचनाएं उपलब्ध हैं.

रचनात्मकता के लिए वरदान--

 इंटरनेट ने व्यक्तियों के भीतर  निहित रचनात्मकता को उभारने में अमूल्य और असीमित योगदान दिया है इंटरनेट के युग में व्यक्तियों ने हर किसी ने अपने भीतर की रचनात्मकता को पहचाना है और उसे उभारने का आगे बढ़ाने का प्रयास किया है. बिना इंटरनेट के ऐसा होना कभी भी संभव नहीं था. आज यदि किसी के अन्दर वास्तव में प्रतिभा है तो सीमित साधनों में भी आगे बढ़ने और सम्पन्न होने से उसे कोई नहीं रोक सकता.

सच ही है-

कला,संस्कृति की दुनिया 

का सरताज है इन्टरनेट

प्रेरणा का स्त्रोत, मंजिलों 

का सफर है इन्टरनेट

मेरी आँखों को सपने देखने

की हिम्मत दी है इसने

मेरे सपनों का 

कद्रदां है इन्टरनेट 

हमारी संस्कृति को आगे बढ़ाने में   इन्टरनेट का महत्वपूर्ण योगदान हैं--

हर राज्य और हर देश की संस्कृतियों से हम घर बैठे ही परिचित हो जाते हैं. समय के साथ विलुप्त हो रही संस्कृतियां भी प्रकाश में आने लगी हैं.

स्थानीय, राष्ट्रीय और अन्तर्राष्ट्रीय एकता में भी इन्टरनेट मील का पत्थर साबित हुआ है--

घर बैठे देश विदेश कोई कहीं भी हो, सबसे वीडियो चैकिंग द्वारा सम्पर्क साधा जा सकता है व बातचीत की जा सकती है, बिल्कुल उसी तरह से जैसे धार्मिक सीरियल्स में ब्रह्मा, विष्णु, महेश स्मरण मात्र से ही पलक झपकते ही कहीं भी  प्रकट हो जाते हैं.

अब कोई दूर महसूस नहीं होता. सब की कुशल मंगल इंटरनेट के माध्यम से कभी भी जान सकते हैं. सोशल मीडिया पर देश विदेश के मित्र बनाने से सब अपने से लगते हैं.  

राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय एकता निभाने में और आगे बढ़ाने में भी इंटरनेट का महत्व पूर्ण योगदान है--

आज भारत के संबंध अन्य देशों  के साथ इतने अच्छे हैं और भारत का नाम आज अग्रणी देशों में गिना जाने लगा है इसके पीछे इंटरनेट का  महत्वपूर्ण योगदान है.

लोग जीवन में अधिक आध्यात्मिक होने लगे हैं--

ज्ञान विज्ञान का खूब प्रचार प्रसार हो रहा है. घर बैठे लोग टी.वी. व वीडियो देखकर सत्संग व मेडीटेशन  सीखकर लाभान्वित हो कर अपने जीवन व आत्म सुधार की दिशा में भी आगे बढ़ने का प्रयास कर रहे हैं.

नये नये आसन इन्टरनेट पर सीख कर लोग योग पद्धति को अपने जीवन में अपनाने लगे हैं.

आॉनलाइन खरीददारी--

घर बैठे ही आॉनलाइन खरीददारी के विकल्प ने जहां उपभोक्ताओं को बड़ी सुविधा प्रदान की है, वहीं बाजार और आर्थिक नीति को भी नयी ऊंचाइयां प्रदान की हैं. 

घर बैठे ही डॉक्टरों से भी सलाह ली जा सकती है व ऑनलाइन दवाइयां भी मंगाई जा सकती है

आॉनलाइन खरीददारी व होम डिलीवरी से  जहां उपभोक्ताओं को सुविधा प्राप्त हुई है वहीं रोजगार के भी नये नये अवसर पैदा हुए हैं. 

देश-विदेश क्या पूरा विश्व ही प्रगति की राह पर चल निकला है.

इन्टरनेट का नकारात्मक पक्ष--

अभी तक हम इन्टरनेट के सकारात्मक पक्ष की बातें कर रहे थे किन्तु इन्टरनेट की व्यापकता पर झुंझलाने वालों की भी कमी नहीं. झुंझलाने के कारण भी अपने स्थान पर कम महत्वपूर्ण नहीं है. जैसे--

* बच्चे, युवा, गृहणियां जिसे देखो सब हर समय इन्टरनेट पर ही लगे रहते हैं. सामाजिकता कम हो गयी है. एक आभासी दुनिया क्रियेट हो गयी है जिससे प्रत्यक्ष सामाजिक रिश्ते प्रभावित हो रहे हैं.

* सबसे ज्यादा खराब तो तब लगता है जब कोई हमारे घर आता है तो वह आता तो हमारे घर है हमसे मिलने के लिए मगर बातें अपने फोन  पर वह अपने अन्य मिलने वालों या दोस्तों या बिजनेस की बातें करता रहता है. कभी कभी तो टेबल पर रखा चाय नाश्ता ठंडा हो जाता है और हम मेहमान का मुँह ही ताकते रहते हैं कि कब वह फोन पर बातें करना बंद कर हमसे भी बातें करें.

(सच में कहाँ गये फुर्सत के वो दिन जब मेहमान के आने पर आराम से बातें होती थी और चाय नाश्ते के साथ टेबल पर ठहाके गूंजते थे.) 

आजकल तो हर कोई जल्दी में और फोन पर किसी ना किसी के साथ व्यस्त है. 

* हर समय फोन और लैपटॉप पर लगे होने से आँखें जल्दी खराब होने लगती है. 

* लोग इन्टरनेट के किसी नशे की तरह आदि हो गये है जिससे मानसिक रूप से बीमार होने का, डिप्रेशन होने का भी भय रहता है.

* अश्लीलता और अपराध को बढ़ावा

इंटरनेट का एक नकारात्मक पक्ष यह भी है कि इससे समाज में अपराध और अश्लीलता को बढ़ावा मिला है. बच्चे इन्टरनेट पर अश्लील फिल्में देखते हैं. इन्टरनेट पर तो सब उपलब्ध है. 

आपराधिक फिल्मों व सीरियलों से अपराध की नयी नयी ट्रिक्स सीखकर युवा उन्हें अपनाते और आजमाते हैं जिससे अपराधीकरण को बढ़ावा मिलता है.

राजनीति के क्षेत्र में भी टेक्नोलोजी का प्रयोग दंगे फैलाने और भड़काने में धड़ल्ले से किया जा रहा है.


तो ये थे इन्टरनेट के सकारात्मक और नकारात्मक पक्ष. और भी अनेक पाइन्ट्स हो सकते हैं जिनका

उल्लेख यहां नहीं हो पाया हो.

इन्टरनेट के नकारात्मक पक्ष को लें तो मुझे एक कविता की पंक्ति याद आती है कि

"जितना सत्य है दीप का सौम्य उजाला, 

उतनी ही सच है तेल की कड़वी गन्ध दीप बुझ जाने के बाद"

मूलत: हर अविष्कार लोक कल्याण के लिए ही किया जाता है मगर संसार में नकारात्मक और विकृत मानसिकता वाले लोगों की भी कमी नहीं जो निजी लाभ और स्वार्थों के चलते उपयोगी संसाधनों का गलत कार्यों में दुरुपयोग करते हैं.

निवारण-- 

* लत तो इन्टरनेट क्या किसी भी आदत की लग सकती है. संयमित दिनचर्या और खुद को अनुशासित करने से करके हम स्वयं को इन्टरनेट का आदि होने से बचा सकते हैं.

* दोस्तों या किसी के घर जाकर मेहमान बनने या मेजबानी के शिष्टाचार की तरफ भी ध्यान देकर हम कुछ समय के लिए फोन को दरकिनार कर अपने दोस्तों या मेजबान की शिकायत दूर कर मिलने मिलाने का आनन्द ले व दे सकते हैं.

* आंखों की सुरक्षा के लिए चश्मे में ऐसे लैंस का का प्रयोग कर सकते हैं जिनसे कंप्यूटर और लैपटॉप आदि की किरणों का प्रभाव आँखों पर ना हो. जहाँ तक हो समय सीमा निश्चित कर ही लैपटॉप और फ़ोन का उपयोग करे. बीच बीच में आँखों का व्यायाम भी करे तथा बीच बीचमे लैपटॉप या फ़ोन से नजरे भी हटाते रहे. 

* बच्चों को एक लिमिटेड टाइम के लिए ही मोबाइल हाथ में लेने दें. बच्चों पर नजर रखें व ऐसे चैनलों को लॉक कर दें जो उनके देखने योग्य ना हो.

* रही राजनीति व समाज में अपराधीकरण की तो अपराधिक प्रवृत्ति के लोग तो अपराध करेंगे ही करेंगे ही, कहीं ना कहीं से वह युक्ति निकाल ही लेंगे इसके लिए हम इंटरनेट के सकारात्मक पक्ष को नकार नहीं सकते. जहाँ जहां इंटरनेट से अपराधी अपराध करना सीखते हैं तो वहीं इंटरनेट का प्रयोग करके प्रशासन व पुलिस भी अपराध पकड़ने के नए-नए तरीके व साधन प्रयोग करती है और अपराध जगत पर भारी पड़ती है.

निष्कर्ष--

निष्कर्षत: कहा जा सकता है कि जितना सत्य दिन का उजाला है उतना ही सत्य रात का अंधकार भी, जितना सत्य जीवन है उतनी ही सत्य मृत्यु.

कहने का अर्थ है कि हर चीज के दो पहलू होते ही है़ं. हम क्यों ना यथासंभव सावधानीपूर्वक नकारात्मक पहलुओं का उपाय करते हुए सकारात्मकता के साथ इंटरनेट जैसे आधुनिक तकनीक और संसाधनों को अपनी जिंदगी का हिस्सा बनाकर प्रगति के मार्ग पर आगे बढ़े. आपका क्या कहना है? मेरे विचारों से आप किस हद तक सहमत हैं, कमेंट बाक्स में कमेंट कर अवगत करायें.

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