ब्लाग 'गृह-स्वामिनी' पर पिछली पोस्ट में आपने पढ़ा था एक कृष्ण भजन 'हँँस हँस के मोहे रिझाये गयो रे'.
जन्माष्टमी के उपलक्ष में साँवरे के सलोने रूप और उनकी लीलाओं को वर्णित करता एक हिन्दी भजन और पढ़ें .......यदि पसन्द आये तो comment कर के प्रतिक्रिया भी दें.
तो प्रस्तुत है एक नया कृष्ण भजन
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तेरा हर रूप है मनोहारी
कृष्ण मुरारी मेरे प्रभु, नटख़ट कृष्ण मुरारी
गोदी में मैय्या की आने को, नटख़ट रो रो मचले
लेवे मैय्या तो भागे दे दे, किल्कारी छवि अति प्यारी
ये जग तो पे बलिहारी, लीला अद्भुद सुखकारी
मेरे कृष्ण मुरारी कान्हा, ओ रे बृज रास बिहारी
तेरा हर रुप है मनोहारी मेरे कृष्ण मुरारी
तेरा हर रुप है मनोहारी मेरे कृष्ण मुरारी
कृष्ण मुरारी मेरे प्रभु, नटख़ट कृष्ण मुरारी
गोपियों संग तूने कान्हा, गोकुल में रास रचाया
कृष्ण राधा की जोड़ी |
कुरूक्षेत्र में था गीता का, अर्जुन को पाठ पढाया
कभी योगी कभी रसिया, सांवरिया मनबसिया
तेरा लीला अति प्यारी, चमत्कारी ओ त्रिपुरारी
तेरा हर रुप है मनो,हारी मेरे कृष्ण मुरारी
कृष्ण मुरारी मेरे प्रभु, नटख़ट कृष्ण मुरारी
द्रौपदी ने पुकारा उस, की तुमने लाज बचायी
मददगार सबका तू, तू ही है कान्हा हितकारी
दुनिया बलिहारी तुझ, पे प्यारे गोवर्धनधारी
तेरा हर रुप है मनोहारी मेरे कृष्ण मुरारी
कृष्ण मुरारी मेरे प्रभु, नटख़ट कृष्ण मुरारी
---------------------------------------------कृष्ण मुरारी मेरे प्रभु, नटख़ट कृष्ण मुरारी
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