नारी स्वभावत: ममतामयी व सहनशील होती है किंतु उसके इस स्वभाव को उसकी कमजोरी मान लिया जाता है और उस पर अनेक प्रकार के अत्याचार किए जाते हैं.
किन्तु औरत कमजोर नहीं है़. जब वह आक्रोश में आ जाए तो वह चंडी का रूप धारण कर समस्त दुष्टों का नाश भी कर सकती है. नारी के आक्रोश को व्यक्त करती है यह कविता पढ़ें जिसका शीर्षक है 'औरत"
औरत
एक बंद मुट्ठी,
और
मुट्ठी में बंद है
सूरज
मुट्ठी क़ी झिर्रियों से
फूट रही हैं
निरंतर
रोशनी क़ी किरचें
जिनसे तुमने
पाया है
जीवन दान
और जीवन को
जीने की दिशा.
स्वयं को अन्धकार में रख
मैंने
तुम्हें दिया है
उजाला
क्योंकि
चिराग तले
तो
सदा अँधेरा ही होता है.
सदैव
मार्ग प्रशस्त किया तुम्हारा
कि
बढ़ सको तुम
प्रगति पथ पर.
एक माँ के रूप में औरत |
तुम्हे जन्म देकर मैं
माँ के रूप में
फूली ना समाई,
तुमने पहला कदम बढाया
तो मैं
निहाल हो गयी
तुम
समाज के लिए महत्त्वपूर्ण बने
तो
मैंने स्वयं को परिपूर्ण समझा.
मगर
तुम आज इतने बड़े हो गए
कि तुम
औरत को ही निगलने लगे
इतनी चकाचौंध हो गयी
तुम्हारी आँखे
अपने पुरुषत्व में
कि
तुम भुला बैठे
औरत का हर रूप
माँ, बहन, बेटी, दोस्त और पुत्री का.
औरत
तुम्हारे लिए
रह गयी
मात्र औरत.
मगर तुम भूल गए
कि
जिसकी मुट्ठी में बंद है
सूरज
वह है औरत
जो जगा सकती है
तुम्हारे विरूद्ध
समूचे समाज को
समूचे राष्ट्र को
और समूचे युग को....
कभी दामिनी बन कर
तो कभी साध्वी बन कर
अब भी वक़्त है,
चेत जाओ, वर्ना
दो विकल्प है
औरत के सम्मुख
या तो अपनी मुट्ठी भींच कर
रोक दे झिर्रियों से आती
रोशनी की हर किरण को,
या फिर
खोल दे अपनी समूची मुट्ठी
और स्वतंत्र कर दे
सूरज को.
फिर या तो
अन्धकार है तुम्हारे लिए
या
भीषण आग
माँ के रूप में
फूली ना समाई,
तुमने पहला कदम बढाया
तो मैं
निहाल हो गयी
तुम
समाज के लिए महत्त्वपूर्ण बने
तो
मैंने स्वयं को परिपूर्ण समझा.
मगर
तुम आज इतने बड़े हो गए
कि तुम
औरत को ही निगलने लगे
इतनी चकाचौंध हो गयी
तुम्हारी आँखे
अपने पुरुषत्व में
कि
तुम भुला बैठे
औरत का हर रूप
माँ, बहन, बेटी, दोस्त और पुत्री का.
औरत
तुम्हारे लिए
रह गयी
मात्र औरत.
मगर तुम भूल गए
कि
जिसकी मुट्ठी में बंद है
सूरज
वह है औरत
जो जगा सकती है
तुम्हारे विरूद्ध
समूचे समाज को
समूचे राष्ट्र को
और समूचे युग को....
कभी दामिनी बन कर
तो कभी साध्वी बन कर
अब भी वक़्त है,
चेत जाओ, वर्ना
दो विकल्प है
औरत के सम्मुख
या तो अपनी मुट्ठी भींच कर
रोक दे झिर्रियों से आती
रोशनी की हर किरण को,
या फिर
खोल दे अपनी समूची मुट्ठी
और स्वतंत्र कर दे
सूरज को.
फिर या तो
अन्धकार है तुम्हारे लिए
या
भीषण आग
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