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यह महिलाओं को क्या हो गया है

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आधुनिक महिला 
काफी दिनों से महिलाओं के बारे में लिखी यह पोस्ट मेरे ब्लॉग के डैशबोर्ड पर अप्रकाशित ड्राफ्ट  के रूप में पड़ी हुई थी. आज इस पोस्ट को  थोड़े  से संशोधन के साथ पोस्ट करने का मन हो आया.
हाँलाकि यह पोस्ट 6-7 वर्ष पुरानी है और इस बीच महिलाओं की सोच, रहन-सहन के ढंग में आधुनिकता के दृष्टिकोण से और भी तेजी से परिवर्तन आया है और समाज भी उनको उनके नये रुप में देखने का अभ्यस्त हो चुका है. इसीलिये इस पोस्ट को अप्रासंगिक भी कहा जा सकता है फिर भी मैं इस पोस्ट को प्रकाशित करने का लोभ संवरण नहीं कर पा रही हूं. आपकी राय जानना चाहती हूँ कमेंट बोक्स में प्रासंगिक रूप से. चाहती हूँ कि इस विषय पर विस्तार से चर्चा हो निष्पक्ष रूप से जिससे नये नये विचार सामने आये और समाज को सही दिशा मिल सके. 

यह महिलाओं को क्या हो गया है?

कुछ वर्ष पूर्व दूरदर्शन पर 'कौन बनेगा करोडपति' के एक एपिसोड में एक महिला ने अमिताभ बच्चन से कहा कि वह उनके घर में रहकर उनके बर्तन तथा कपडे साफ करते हुए उनकी सेवा में उनके घर में रहना चाहती है. एक महिला होने के नाते मुझे इन महिला का ऐसा कहना बिलकुल अच्छा नहीं लगा.

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क्या आधुनिकता के अतिरेक में हमारी महिलाएं अपनी संस्कृति व गरिमा का हनन नहीं कर रही हैं? मैं भी एक महान कलाकार तथा एक गरिमापूर्ण व्यक्तित्व के रूप में अमिताभ बच्चन जी की बहुत बड़ी प्रशंसक हूँ किन्तु कोई भी व्यक्तित्व अथवा कलाकार हमारे लिए हमारे आत्म-स्वाभिमान से बड़ा नहीं हो सकता.  महिलाओं को अपनी स्त्री-सुलभ गरिमा को कभी भी अपने व्यवहार से कम नहीं करना चाहिए.
अमिताभजी के प्रति अपने आदर तथा अपनी निष्ठा को वे अन्य शब्दों में भी व्यक्त कर सकती थीं.

वह पढ़ी-लिखी तथा शायद जंतु-विज्ञानं की लेक्चरार हैं तथा अपने क्षेत्र में माहिर हैं. उनके मुख से ऐसे शब्द एक नारी होने के नाते गरिमापूर्ण नहीं लगे. 

ऐसे ही कुछ दिन पूर्व एक २२-२३ वर्ष की लड़की 'कौन बनेगा करोडपति' के एपिसोड में आई थी. उसने अमितजी से कहा कि आपने अभिषेकजी कि शादी ऐश्वर्याजी से कर दी, हमारे लिए कोई विकल्प ही नहीं छोड़ा.

क्या इस बच्ची के मुख से इतने बड़े, बुजुर्ग इंसान से वो भी इस सार्वजानिक मंच पर ऐसी बात कहना शोभा दे रहा था? माना यह सब एक मजाक था मगर फिर भी आधुनिक तथा स्मार्ट बनने और दिखने के चक्कर में लड़कियों को स्वयं की गरिमा को नहीं भूलना चाहिए.

अभी कुछ दिन हुए फेसबुक पर पोस्ट थी जिसमें नाममात्र को कपड़े पहने हुए एक लड़की का स्टेटमेंट था कि हमारे शरीर पर हमारा हक है. हम कुछ भी पहने, किसी को एतराज करने का हक नहीं. ऊपर के हिस्से में वह लड़की कुछ नहीं पहने हुई थी.

यह कैसी आधुनिकता है, कैसी आजादी? आधुनिकता के नाम पर लड़कियां कहाँ जा रही हैं?

आधुनिकता की कोई सीमा नहीं है. आज की पीढ़ी आधुनिकता के नाम पर कितनी ही दूर तक जाने में भी संकोच नहीं कर रही है किन्तु अपनी भारतीय संस्कृति की डोर उसे अपनी कमर में बांधे रखनी ही होगी जो उसे अपनी गरिमा तथा मर्यादा का भान कराती रहे तथा सर्वनाश के गर्त में गिरने से पूर्व ही पीछे खींच ले. 

यदि मेरे विचारों से किसी की भावनाओं को चोट पहुंची हो तो मैं क्षमा-प्रार्थी हूँ किन्तु अपने इन विचारों पर मैं आपके सुझाव चाहती हूँ. कृपया अपनी राय से अवगत कराएँ.

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