' काव्य' के अन्तर्गत एक गीत आपके लिए...... दिल में तेरे प्यार को मैंने गिरह बांधकर रखा है दिल में तेरे प्यार को मैंने गिरह बांधकर रखा है मत देखो कि जीवन किस सांचे में ढाल कर रखा है ऊपर से जो दिखता हूं मैं दुनिया की मेहरबानी है मेरे भीतर झांक के देखो अलग ही एक कहानी है दिल के अंदर मंदिर है दिया बाल कर रखा है दिल में तेरे प्यार को मैंने गिरह बांध कर रखा है मत देखो कि जीवन किस सांचे में ढाल कर रखा है चल-चल के थक जाता हूं मन की देहरी लँघ लेता हूं यादों में तुझ संग रो, हंस कुछ पल मैं भी जी लेता हूँ दिखता हूं कंगाल, दिल में अनमोल खजाना रखा है दिल में तेरे प्यार को मैंने गिरह बांध कर रखा है मत देखो कि जीवन किस सांचे में ढाल कर रखा है मुझको और चाहिए भी क्या जग कहे उसे जो कहना तब भी तुझे देख के जीता अब भी बस तेरा सपना मूंद लिए हैं नैन अपने पलकों में स...
प्रस्तुत है जीवन के सत्य असत्य का विवेचन करती एक आध्यात्मिक कविता 'मन समझ ना पाया'. वास्तव में मन को समझना ही तो आध्यात्मिकता है. यह मन भी अजब है कभी शांत बैठता ही नहीं. जिज्ञासु मन में अलग-अलग तरह के प्रश्न उठते हैं. कभी मन उदास हो जाता है कभी मन खुश हो जाता है. कभी मन में बैराग जागने लगता है कभी आसक्ति . मन के कुछ ऐसे ही ऊहापोह में यह कविता मेरे मन में झरी और मैंने इसे यहां 'गृह-स्वामिनी' के पन्नों पर उतार दिया. पढ़कर आप भी बताइए कि यही प्रश्न आपके मन में तो नहीं उठते हैं. मन समझ ना पाया क्या सत्य है, क्या असत्य मन समझ ना पाया कभी शांत झील सा वीतरागी यह मन तो कभी भावनाओं का अन्तर्मन में झोंका आया क्या सत्य है, क्या असत्य मन समझ ना पाया छोर थाम अनासक्ति का रही झाँकती आसक्ति लगा कोलाहल गया हो गयी अब विश्रांति जगी फिर यूं कामना मन ऐसा उफनाया कैसा तेरा खेल, प्रभु कोई समझ ना पाया क्या सत्य है, क्या असत्य मन समझ ना पाया कैसा जोग, कैसा जोगी बैरागी कहलाये जो बन जाये ...